नदी बहै जलधारा संतो -2
हाँ.... वह हरि का रे वह हरि का वह हरि का नाम पियारा
संतो नदी बहै.......
जल कै पुरइन जलै मा उपजै जलै मा करै पसारा।
पान पात्र वाके नहीं सोहै ढरकि परै जइसे पारा।।
संतो नदी बहै.......
जइसे सूर चढ़े लड़ने को पग पाछे नहि टारा।
उनकी सूरत भई लड़न को प्रेम मगन ललकारा।।
संतो नदी बहै.......
भवसागर एक नदी बहति है लख चौरासी धारा।।
धर्मी धर्मी पार उतरि गे पापी डूबे मझधारा।।
संतो नदी बहै.......
जइसे सती चढ़ी सत ऊपर पिया बचन नहि टारा।
आप तरै औरो का तारै तारहू कुल परिवारा।।
संतो नदी बहै.......
कागज की एक नैया बनी है छोड़ दियो मझधारा।
वही पार ते हरी पुकारै चले आओ यहि पारा।।
संतो नदी बहै.......
निर्देशक ; श्री राजेंद्र बहादुर सिंह ,श्री राजेंद्र सिंह (विषधर )
लेखक; शरद सिंह