निरखत जा हे जटायू रथ को Nirkhat ja he jatayu rath ko


निरखत जा हे जटायू रथ को-2
हाँ..... रथ सो है रे रथ सो है ,रथ सो है जानकी माई
रथ को........

विप्र रूप धरि आयो निसाचर भिच्छा मांगन आई।
लै भिच्छा निकरी नंदरानी रथ पर लेत चढ़ाई।।
रथ को........

रथ पर व्याकुल भई जानकी सरन सरन गोहोराई।
है कोउ जोधा तीन लोक मा हमका लेत छोड़ाई।।
रथ को........

इतना सुनि खगपति उठि धाये हॉक देत गोहोराई।
कहकी तिरिया काह नाम है कौन हरे अब जाई।।
रथ को........

उत्तर दिशा अयोध्या नगरी दशरथ सुत रघुराई।
तिनकी तिरिया नाम जानकी हरे निसाचर जाई।।
रथ को........

चोचन मारि महायुध  कीन्हा रथ रखा विलमाई।
अगिनि बाण जब छोड़ो निसाचर पंख गिरे भहराई।।
रथ को........

परे परे खगपति गोहरावै सुनो जानकी माई।
जौ पर हमरे जरे परे हैं तौ पुनि देव जमाई।।
रथ को........

देत आशीष मनै मन सीता प्राण राखि घर माही।
तुलसीदास रघुबर जब अइहैं कह्यो  कथा समुझाइ।।
रथ सो........

     निर्देशक : श्री राजेंद्र बहादुर सिंह ,श्री  राजेंद्र सिंह (विषधर )
     प्रकाशक : शरद सिंह 

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