कपि से उरिन हम नाही भरत भाई -2
हां...... हे कपि उरिन हम नाही-2
भरत भाई......
सौ योजन मर्याद सिंधु की फांदि गयो छिन माही।
लंका जारी सिया सुधि लायी गरब नहीं मन माहीं।।
भरत भाई......
शक्ती बाण लगेव लक्षिमन के शोर भयो दल माही।
कह धौला कह मूल सजीवन आनि लायों छिन माहीं।।
भरत भाई.......
पैठि पताल तोरि जम कातर बैठि गयो मन माहीं।
अहि रावण की भुजा उखारेव फेंकि दियो दल माहीं।।
भरत भाई.....
काज सकल विधि कियो हमारे दुक्ख सह्यो संग माहीं ।
तुलसीदास भज्यो भगवाना है अस को है जग माहीं ।।
भरत भाई.....
निर्देशक ; श्री राजेंद्र बहादुर सिंह ,श्री राजेंद्र सिंह (विषधर )
लेखक; शरद सिंह