काहे न खेलो होली राधिका Kaahe na khelo holi Radhika

काहे न खेलो होली राधिका -2
हाँ....... हाँ काहे न खेलो होली -2 
राधिका काहे .....

फागुन रंग बसंत जानायो चहुं दिशि जालि गई होली।
फागु की भीर अबीर उड़ी है धूम मची चहुं ओरी।।
राधिका....

वन बागन में पुष्प खिले है पवन चले झकझोरी
जंगल मोरवा कुहुकन लागे कोयल बोलैं रस घोरी।।
राधिका....

अंग अनंग की माती सखियां हमसे करै बरजोरी।
काहे रूठी वृषभानु नंदिनी बैठी रही मुंह मोरी।।
राधिका....

इतना सुनके उठी राधिका सब सखियन को टेरी।
सूर श्याम बाली जाऊं चरण का खेले प्रेम रस होरी ।।
राधिका....


निर्देशक : राजेंद्र बहादुर सिंह , राजेंद्र सिंह (विषधर)
 प्रकाशक -शरद सिंह


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