कोप उठे रघुराई समर मा -२
हाँ..... हे कोप उठे रघुराई -२
समर मा........
जटा सभारि मुकुट प्रभु बांध्यो पीताम्बर फहराई।
एकतिस बाण धरे रौंदा पर श्रवनन खैंचि चलाई।।
समर मा........
दस बाणन से दस सिर कटि गे लई गे पवन उड़ाई।
बीस बाण बीसो काट्यो एक नाभि म समाई।।
समर मा........
बिनु सिर भुज के रुण्ड को देखत कपिन अधिक भय खायी।
तब प्रभु वाको कियो दुइ खण्डा गिरो धरनि भहरायी।।
समर मा........
राजेंद्र राम दास को दासन हरि चरणन चित लाई।
जो गति है देवन्ह को दुर्लभ सो गति रावण पाई।।
समर मा........
निर्देशक : राजेंद्र बहादुर सिंह , राजरंदरा सिंह (विषधर)
प्रकाशक -शरद सिंह