निकरि गए दोउ भाई बन का Nikari gye dou bhai ban ka

निकरि गए  दोउ  भाई बन  का -2
 हाँ......... हे भाई  भौजाई -2
बन का  निकरि.......
अबहि तो दोनों हसत खेलत रहे रम रहे जोगिया की नाई।
मातु  कौशिला ढूढन निकरी अंत खोजि नहि पाई।।
बन का  निकरि.......

सोने का मिरगा बनि आयो द्वार छलन को जाई।
धनुष बाण लै उठे रघुनंदन मृगा देखि पछूवाई।।
बन का  निकरि.......

आगे आगे राम चलति है पीछे लछिमन भाई।
तिनके पीछे मातु जानकी झारखंड को जाई।।
बन का  निकरि.......

जेठ बैशाख की तपै दुपहरी बाघम्बर फहराई।
राम लखन के कोमल देहिया घाम लगै कुम्हिलाई ||
बन का निकरि.......

जउने बन मा बाघ बहु लागै वहि बन कोउ न जाई।
वहि वन जइहै राम लछमन कुश का सेज बिछाई।।
बन का  निकरि.......

भादव नदिया अगम बहति है पवन चलै पुरवाई।
कौने वृक्ष  तर भीजत होइहैं राम लखन दोउ भाई।।
बन का  निकरि.......

लंका जीति राम घर आवै घर घर बजै बधाई।
तुलसीदास भजेव भगवाना राज विभीषन पाई।।
बन का  निकरि.....                                                             निर्देशक : श्री राजेंद्र बहादुर सिंह ,श्री  राजेंद्र सिंह (विषधर)          प्रकाशक: शरद सिंह 
एक टिप्पणी भेजें (0)
और नया पुराने