नंद के जोगी दुआरे आयो Nand ke jogi duware aayo

नंद के जोगी दुआरे आयो (२)
हां.... सब अंग रे सब अंगा, सब अंग भभूति लगायो...
नंद के.........

गढ़ पर्वत से चलो दिगंबर, गोकुल नगरी आयो
अंग भभूति गले मृगछाला जोगी जटा बढ़ायो ।। 
नंद के जोगी....

बाघंबर पीताम्बर ओढ़े शेषनाग लपटायो।
माथे सोहै तिलक चंद्रमा, जोगी जटा बढ़ायो।।
नंद के जोगी....

लै भिक्षा निकरी नंदरानी, मोतियन थार भरायो।
लै भिक्षा बाबा जाओ आसन को मेरो लाल डेरायो।। 
नंद के जोगी...

नहीं चाहिए तोरी दुनिया दौलत, नाहीं माल खजाना।
लै आओ ग्वालिन अपने बालक जोगी दर्शन को आयो।। 
नंद के जोगी....

की बाबा तुम भूले भटके की काहू भरमायो।
दूध दही की बेचनहारी मैं बालक कह पायो।। 
नंद के जोगी....

ना बाबा हम भूले भटके, ना काहू भरमायो,
तीन लोक त्रिभुवन को ठाकुर तेरी गोद में आयो।। 
नंद के जोगी.......

लै बालक निकरी  नंदरानी, जोगी दर्शन पायो,
पांच पैग पैकरमा कईके श्रृंगी नाद बजायो।। 
नंद के जोगी .......

निर्देशक : राजेंद्र बहादुर सिंह , राजेंद्र सिंह (विषधर)
 प्रकाशक -शरद सिंह 

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